सुहागिन स्त्री को पार्थिव लिंग की पूजा करना बहुत ही पुण्यदायक होता : डा. बृजेश मणि

सुहागिन स्त्री को पार्थिव लिंग की पूजा करना बहुत ही पुण्यदायक होता : डा. बृजेश मणि

कंदवा के शिव मंदिर प्रांगण में चल रहे तीन दिवसीय संगीतमय कथा के तृतीय दिवस शिव पुराण की कथा बताया कि जहां मनुष्यों के द्वारा शिवलिंग स्थापित किया गया है| 

सुहागिन स्त्री को पार्थिव लिंग की पूजा करना बहुत ही पुण्यदायक होता :  डा. बृजेश मणि

By Diwakar Rai /ब्यूरो चीफ चंदौली |
ग्राम सभा कंदवा केशिव मंदिर प्रांगण में चल रहे तीन दिवसीय संगीतमय कथा के तृतीय दिवस में वाराणसी से पधारे विद्वान डॉ. बृजेशमणि पांडेय जी ने शिव पुराण की कथा का वर्णन करते हुए बताया कि जहां मनुष्यों के द्वारा शिवलिंग स्थापित किया गया है| 

वहां सौ हाथ तक चारों तरफ पुण्य जनक स्थान होता है और जहां ऋषियों के द्वारा शिवलिंग स्थापित किया गया है वहां एक हजार हाथ तक स्थान पवित्र होता है स्वयंभू लिंग जहां उत्पन्न हुआ है वह स्थान चार हजार हाथ तक पवित्र होता है उक्त स्थान पर दान और जप करने से शिवलोक की प्राप्ति होती है | 

उस स्थान पर दाह,दशाह, मासिक श्राद्ध,सपिण्डि करण श्राद्ध करना बहुत ही पुण्य दायक होता है तथा मृतात्मा को शिवलोक की प्राप्ति होती है सुहागिन स्त्री को पार्थिव लिंग की पूजा करना सर्वाधिक फल दायक है स्फटिक लिंग की पूजा सधवा अथवा विधवा कोई भी कर सकती है| 

सुहागिन स्त्री को पार्थिव लिंग की पूजा करना बहुत ही पुण्यदायक होता :  डा. बृजेश मणि
 
देव कार्य प्रातः काल तथा पितरों का पिंडदान इत्यादि का कार्य मध्यान्ह यानी दोपहर में करने का विधान है कार्तिक माह में रविवार के दिन जो मनुष्य सूर्य की पूजा करते हैं तथा तिल और वस्त्र का दान करते हैं उनका कुष्ठ रोग नष्ट हो जाता है दीप और सरसों के दान से मिर्गी रोग से मुक्ति प्राप्त होती है कृतिका नक्षत्र युक्त बुधवार के दिन विष्णु का पूजन करने से एवं दही तथा चावल का दान करने से संतान की प्राप्ति होती है |

महाराज जी ने कथा का वर्णन करते हुए बताया कि अंधकासुर की उत्पत्ति भगवती पार्वती के द्वारा भगवान शिव के नेत्रों को ढक देने से होती है |  भगवान शिव हिरण्याक्ष को वर के रूप में अंधकासुर नामक बालक को प्रदान करते हैं कालांतर में वह त्रिलोक विजयी होता है जन्मांध अंधकासुर तप के द्वारा दिव्य नेत्रों को प्राप्त करता है प्रहलाद इत्यादि हिरण्यकश्यपु के पुत्र उसके सेवक बन जाते हैं | 

समस्त देवताओं के लिए अजेयत भगवान शिव के द्वारा भी जब अंधकासुर की मृत्यु नहीं हो रही थी तब उसे अपने त्रिशूल पर उठाकर आकाश में लटका देते हैं आकाश में स्थित होकर वह शिव की उपासना करता है उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी उसे अपने गणों में  शामिल कर लेते हैं तथा उसे गणपति का पद प्रदान करते हैं ऐसे मंगलकारी दीनदयाल करुणा सागर भगवान शिव की हम सबको भी मनोयोग पूर्वक पूजा करनी चाहिए। 

सुहागिन स्त्री को पार्थिव लिंग की पूजा करना बहुत ही पुण्यदायक होता :  डा. बृजेश मणि

कथा श्रवण करने वालों में अजय राय, संजय राय, अनिल राय, श्री अंजनी राय श्री वेद प्रकाश राय,श्रीप्रकाश, श्यामसुंदर राय बलराम पाठक अच्युतानंद त्रिपाठी विनोद तिवारी शकुंतला, मीरा,पूनम शीला आदि श्रोतागण उपस्थित रहे।

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