मोदी सरकार प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष करों की बोझ जनता पर लाद रही : अजय राय

मोदी सरकार प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष करों की बोझ जनता पर लाद रही : अजय राय

एआईपीएफ राज्य कार्य समिति सदस्य अजय राय ने कहा कि मोदी सरकार गैर जरूरी सवालों पर उलझा कर कर मंहगाई बढ़ाने का काम कर रही है |  

मोदी सरकार प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष करों की बोझ जनता पर लाद रही : अजय राय

हम गैर जरूरी सवालों पर बहस करते रहे, चर्चा है एलपीजी गैस सिलेंडर दामों में पचास रुपए की हो गई वृद्धि 

 चंदौली / दैनिक भास्कर दूत : मोदी जी सरकार पर प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रूप से हर सेक्टर में कर बढ़ाने का आरोप लगाते हुए एआईपीएफ राज्य कार्य समिति सदस्य अजय राय ने एलपीजी सिलेंडर में वृद्धि पर  प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मोदी जी सरकार गैर जरूरी सवालों पर उलझा कर कर मंहगाई बढ़ाने का काम कर रहीं हैं|  

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार जब सत्ता  में आयी थी तो मई 2014 में कच्चे तेल की कीमत 106.85 डालर प्रति बैरल थी। उस समय पेट्रोल व डीजल का बेस प्राइस क्रमश: 47.13 व 44.45 रूपए था, इसमें टैक्स 22.28 रूपए व 11.07 व डीलर कमीशन जोड़ने के बाद दिल्ली में पेट्रोल 71.41 रूपए व डीजल 56.71 रुपए कीमत थी।  

 उन्होंने कहा कि  फरवरी 2021 में कच्चे तेल की कीमत 65.19 डालर प्रति बैरल थी, कच्चे तेल की कीमत कम होने से बेस प्राइस पेट्रोल 32.10 व डीजल का 33.71 रूपए था। लेकिन इस अवधि में कच्चे तेल में कीमत में हुई गिरावट का फायदा आम आदमी को नहीं हुआ। टैक्स में पेट्रोल में 53.51 रुपए व डीजल में 43.48 रूपए कर दिया गया। डीलर कमीशन जोड़ने के बाद पेट्रोल की कीमत 89.29 रूपए व डीजल की कीमत 79.70 रूपए पहुंच गई। 
(स्त्रोत: दैनिक भास्कर की रिपोर्ट में IOCL का डेटा) 

कुल मिलाकर इस 7 साल की अवधि में पेट्रोल व डीजल में टैक्स कृमश: 22.28 रूपए व 11.07 रूपए से बढ़कर 53.51 रुपए व डीजल में 43.48 रूपए हो गया, जोकि पेट्रोल में करीब ढाई गुना व डीजल में करीब 4 गुना बढ़ोतरी ह हैं इधर कच्चे तेल कीमत रिकॉर्ड 65 डालर प्रति बैरल से नीचे आ गई है। लेकिन एक्साइज ड्यूटी में 2 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी का ऐलान कर दिया गया।यह भी खबर है कि घरेलू एलपीजी सिलेंडर में 50 रुपए की बढ़ोतरी हुई है। 

 उन्होंने कहा कि इसी तरह मोदी सरकार ने तकरीबन हर क्षेत्र में अप्रत्यक्ष करों में भारी बढ़ोतरी की है। नतीजा यह है कि जीएसटी संग्रह व पेट्रोलियम उत्पादों से आय में नीचे की 90 फीसद आबादी का योगदान करीब 97 फीसद है। 

वहीं मध्य वर्ग पर आयकर कारपोरेट टैक्स से ज्यादा है। कुल मिलाकर सरकार के खजाने का प्रमुख स्त्रोत 90 फीसद आबादी व नौकरी पेशा मध्य वर्ग है। यानी आम आदमी पर बोझ और बड़े कारपोरेट घरानों को बेइंतहा फायदा पहुंचाया गया है। जिसका नतीजा असमानता की बढ़ती खाई और बेरोज़गारी की भयावह स्थिति है। 

 उन्होंने  कहा कि इधर जैसा कि आशंका जताई जा रही है उसी के मुताबिक ट्रंप के टैरिफ से भारत के आम निवेशकों का 14 लाख करोड़ डूब गया। वैसे दुनिया भर में मंदी, मंहगाई और बेरोज़गारी के बढ़ोतरी की संभावनाएं आर्थिक विशेषज्ञ जता रहे हैं। लेकिन सर्वाधिक विपरीत प्रभाव भारत जैसे देश में पड़ सकता है, क्योंकि मोदी सरकार इससे निपटने के लिए न्यूनतम कदम उठाने के लिए तैयार नहीं है।

 ऐसी स्थिति में देश में बेरोज़गारी की समस्या ज्यादा विकराल रूप धारण कर सकती है। खेती-बाड़ी व छोटे मझोले उद्योगों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। क्योंकि इनके संरक्षण व संवर्धन के लिए सरकार मौजूदा राजनीतिक अर्थनीति में बदलाव के लिए कतई तैयार नहीं है। 

कृषि कानूनों से लेकर अन्य पारित कानूनों में स्पष्ट है कि कारपोरेट घरानों की गिद्ध दृष्टि जमीन व खनिज पर लगी हुई है।  आम आदमी की जिंदगी के लिए बेहद जरूरी यह सवाल राजनीतिक विमर्श का केंद्रीय विषय न बनें, इसीलिए समाज में ध्रुवीकरण व विभाजन पैदा करने का ऐजेंडा पेश किया जाता है। इससे सचेत रहने की जरूरत है। 

 उन्होंने  कहा कि रोजगार अधिकार अभियान में यह सवाल उठाया गया है कि मौजूदा राजनीतिक अर्थनीति में आमूलचूल बदलाव और सुपर रिच खासकर 284 बड़े पूंजी घरानों की संपत्ति पर समुचित टैक्स लगाने से लोगों के सम्मानजनक जीवन, एक करोड़ रिक्त पदों पर तत्काल भर्ती, शिक्षा, स्वास्थ्य व सामाजिक सुरक्षा जैसे सवालों को हल किया जा सकता है।

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