Image Sourcr:Google By:Manish Raghav लखनऊ, पूर्वांचल न्यूज प्रिंट: समाजवादी पार्टी के आग्रह पर विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित ने गुरुवार को शिवपाल यादव की सदस्यता समाप्त करने के लिए दी गई याचिका को वापस कर दिया है. हालांकि, कोरोना संकट के दौर में चाचा-भतीजा की बीच कई मुलाकातें हो चुकी हैं. ऐसे में एक बार फिर सियासी चर्चा गरम है कि क्या शिवपाल यादव की सपा में घर वापसी होगी. जानकारों कहना है कि शिवपाल की कभी सपा में वापसी हो सकती है.
समाजवादी पार्टी से बगावत कर अपनी अलग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) पार्टी बनाने वाले शिवपाल सिंह यादव की विधानसभा सदस्यता पर मंडरा रहा खतरा खत्म हो गया है. सपा के आग्रह पर विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित ने गुरुवार को शिवपाल की सदस्यता समाप्त करने के लिए दी गई याचिका को वापस कर दिया है. हालांकि, कोरोना संकट के दौर में चाचा-भतीजा की बीच कई मुलाकातें हो चुकी हैं. ऐसे में एक बार फिर सियासी चर्चा गरम है कि क्या शिवपाल यादव की सपा में घर वापसी होगी या नहीं?
बता दें कि समाजवादी पार्टी के नेता रामगोविंद चौधरी ने चार सितंबर, 2019 को दल परिवर्तन के आधार पर शिवपाल यादव की विधानसभा से सदस्यता समाप्त करने की याचिका दायर की थी. लेकिन बाद में सपा ने 23 मार्च को प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर शिवपाल यादव के खिलाफ दलबदल कानून के तहत कार्रवाई करने की याचिका वापस करने की मांग की. लॉकडाउन के चलते विधानसभा सचिवालय बंद रहने की वजह से इस पर फैसला नहीं हो सका था.
सपा के आग्रह को विधानसभा स्पीकर हृदयनारायण दीक्षित ने स्वीकार कर शिवपाल यादव की विधायकी पर मंडरा रहे खतरे को टाल दिया है. सपा की याचिका वापस लेने के समय को देखें तो सियासी कयासों को बल मिलता है. शिवपाल के करीबी की मानें तो कोरोना संकट के बीच चाचा-भतीजे के बीच कई दौर की बैठक हो चुकी हैं. पिछले दिनों मुलायम सिंह यादव जब लखनऊ के मेदांता अस्पताल में भर्ती थे तो शिवपाल देखने गए थे. इस दौरान शिवपाल की मुलाकात भतीजे अखिलेश यादव से भी हुई थी और दोनों नेताओं ने काफी देर तक बंद कमरे में चर्चा की थी.
शिवपाल की पुरानी शर्त क्या बनेगा बाधक?
शिवपाल यादव सपा प्रमुख अखिलेश यादव से गठबंधन करने की शर्त रख रहे हैं. इस बात को शिवपाल कई बार सार्वजनिक रूप से भी कह चुके हैं, लेकिन अखिलेश इस बात पर राजी नहीं है. हालांकि, सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की भी यही कोशिश है कि शिवपाल और अखिलेश एक हो जाएं. इसके लिए अभी चंद दिनों पहले ही लखनऊ में चाचा-भतीजा को एक साथ उन्होंने बैठाया था. 2022 चुनाव से पहले शिवपाल व अखिलेश की एका जरूरी
लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार और बसपा अध्यक्ष मायावती के गठबंधन तोड़ने के बाद से अखिलेश यादव के सामने अपनी पार्टी को बचाए रखने की बड़ी चुनौती है. एक-एक कर सपा नेता साथ छोड़ते जा रहे हैं. पिछले दिनों कई राज्यसभा सदस्यों ने सपा का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया. ऐसे में अखिलेश दोबारा से पार्टी को मजबूत करने में लग गए हैं. यही वजह है कि अखिलेश और शिवपाल के बीच जमी कड़वाहट की बर्फ पिघलती नजर आ रही है.
वर्ष 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम कुनबे में वर्चस्व की जंग छिड़ गई थी. इसके बाद अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी पर अपना एकछत्र राज कायम कर लिया था. अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच गहरी खाई हो गई थी. हालांकि मुलायम सिंह यादव सहित पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने दोनों नेताओं के बीच सुलह की कई कोशिशें कीं, लेकिन सफलता नहीं मिली.
लोकसभा चुनाव से ऐन पहले शिवपाल यादव ने अपने समर्थकों के साथ समाजवादी मोर्चे का गठन किया और फिर कुछ दिनों के बाद उन्होंने अपने मोर्चे को प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) में तब्दील कर दिया. लोकसभा चुनावों 2019 में शिवपाल यादव ने भाई रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव के खिलाफ फिरोजाबाद सीट से ताल ठोकी थी और दोनों चुनाव हार गए थे. लोकसभा चुनाव के बाद शिवपाल और अखिलेश के सामने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने की चुनौती है. ऐसे में अब दोनों नेताओं के बीच सुलह समझौते के लिए मुलाकात का दौर शुरू हो चुका है और अब देखना है कि शिवपाल यादव की घर वापसी होती या फिर नहीं? अंत में कहां जाकर मामला लटक जाता है. वैसे शिवपाल के करीबियों का कहना है कि अगर अखिलेश ने उन्हें वापस आपसी सहमति के बाद नहीं लाया तो आगामी विधानसभा चुनाव में फिर नुकसान उठाना पड़ेगा जबकि शिवपाल को विशेष नुकसान नहीं होगा.