UP: श्रमिक अधिकारों में सरकार की कटौती के खिलाफ उबाल, हाईकोर्ट से लेकर सड़क तक लड़ाई तेज करने को लेकर मंच बनाने में जुटे मजदूर नेता

UP: श्रमिक अधिकारों में सरकार की कटौती के खिलाफ उबाल, हाईकोर्ट से लेकर सड़क तक लड़ाई तेज करने को लेकर मंच बनाने में जुटे मजदूर नेता



By-Purvanchal News Print , लखनऊ: श्रमिकों के अधिकार में सरकार द्वारा कटौती के खिलाफ मजदूर नेताओं ने दिया तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है.


प्रदेश में सरकार द्वारा श्रम कानूनों पर तीन साल के लिए रोक लगाने के सवाल पर मंजदूर संगठनों व मजदूरों की श्रम अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले नेताओं में जबरदस्त आक्रोश है और श्रम अधिकारों की रक्षा के लिए आर पार की लड़ाई लड़ने के मूड़ में हैं. श्रम अधिकारों को लेकर हर समय लड़ाई लड़ने वाले व वर्कर फ्रंट से जूड़े मजदूर नेता अजय राय ने कहा कि सरकार मजदूरों को बंधुआ बनाने की ओर बढ़ रही हैं.                                                उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा श्रम कानूनों पर तीन साल के लिए रोक लगाने औद्योगिक विकास को अवरुद्ध कर देगी और निवेशक निवेश करने से  बचेंगे  श्रम कानूनों द्वारा श्रमिकों को मिले अधिकारों के कारण उनका विश्वास व्यवस्था में बहाल रहता था. श्रम विभाग द्वारा विवाद उत्पन्न होने पर हस्तक्षेप करने से बेहतर उत्पादन के लिए अनिवार्य शर्त औद्योगिक कायम रहती थी हमारे संगठन वर्कर फ्रंट श्रम अधिकारों की रक्षा के लिए हाईकोर्ट तक का सहारा लेगी. वहीं श्रमिकों की लड़ाई लड़ने वाले भाकपा नेता शुकदेव मिश्र का कहना है कि भाजपा की सरकार पूरी तरह से मजदूर विरोधी सरकार हैं और यह सरकार धीरे-धीरे तानाशाही की तरफ बढ़ रहीं हैं. मजदूरों की लड़ाई में अग्रणी भूमिका अदा करने वाली डा०गीता शुक्ल कहती हैं कि यह सरकार की श्रमिक विरोधी नीति के कारण अब किसी श्रमिकों का अगर उत्पीड़न होता है और वह श्रम विभाग में शिकायत करता है तो श्रम विभाग औद्योगिक घरानों को एक अदद् नोटिस भी जारी नहीं कर सकता हैं. इसलिए मजदूर विरोधी यह निर्णय वापस लेना चाहिए. माकपा से जूड़े मजदूर नेता लालचंद यादव कहते हैं कि निवेश को आकर्षित करने के लिए और कोरोना महामारी में बंद पड़े उघोगों को पुनर्जीवित करने के लिए श्रम अधिकारों में कटौती की गयी हैं जो सही नहीं हैं. इसे सरकार को वापस लेना चाहिए.
अगर कहें तो श्रमिकों के बीच  सरकार के मजदूर विरोधी रूख के खिलाफ आवाज उठने लगी हैं. मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर और समान विचार धारा, श्रमिकों के अधिकारों को लड़ने वाले व्यक्तिओं को लेकर व्यापक मंच बना कर सरकार को इसे वापस लेने के लिए बाध्य करने की रणनीति बनाने में जुट गए हैं.