Breaking News Manrega: ग्रामीण इलाकों की तरह नहीं हुआ शहरों में विस्तार, नहीं बजट और कामों के दिन मेंहुई बढ़ोतरी, कहाँ से मिलेगा मजदूरों को ज्यादा काम

Breaking News Manrega: ग्रामीण इलाकों की तरह नहीं हुआ शहरों में विस्तार, नहीं बजट और कामों के दिन मेंहुई बढ़ोतरी, कहाँ से मिलेगा मजदूरों को ज्यादा काम

                                                                                                ◆ रोजगार देने की संजीवनी मनरेगा में भी भारी-भरकम पैकेज में किया गया उपेक्षा : अजय राय ◆                                Purvanchal News Print लखनऊ: जब देश में यह बात की चर्चा हो रहीं हैं कि मनरेगा योजना से मजदूरों जो वैश्विक महामारी में लॉककडाउन होने से  बेरोजगार हो गयें हैं, वे भूख के संकट से जूझ रहें हैं उनके लिए यह संजीवनी का काम करेंगी.भले ही पहले भारत के प्रधानमंत्री इस योजना को फालतू की योजना कहें हो लेकिन आज यह प्रवासी मजदूर जो शहर में लॉकडाउन होने के कारण गाँव की तरफ आये हैं, उनके लिए और ग्रामीण क्षेत्र में भी संकट के समय इस योजना में काम कर कुछ पैसा कमा सकते हैं. किसान मजदूर मंच के प्रभारी व  स्वराज अभियान के नेता अजय राय कहते हैं कि सरकार इस योजना के तहत रोजगार देने के लिए कितना गंभीर हैं. कई बातें से साफ हो जा रहीं है कि पहले तो सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के बजट का अवलोकन करें तो आप देखेंगे कि उनके बजट में  भी कटौती कर दिया गया है. वहीं मनरेगा 2020-2021 के लिए 61500 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया हैं जबकि पिछले साल 2019-20 में बजट का संशोधित अनुमान (आरई) 71001.81 करोड़ रूपये का लगाया गया था यानि संशोधित अनुमान के हिसाब से बात की जाए तो सरकार ने लगभग 10 हजार करोड़ रूपये यानि 15 फ़ीसदी घंटा दिया हैं. जब पिछले साल बजट बड़ा था तो सरकारी आंकड़े के हिसाब से मनरेगा मजदूर को औसत 11 दिनों का ही काम मिला था. इस बार जब मनरेगा का बजट घटा हैं तो औसत कितने दिन काम मिलेगा देखना है. मौजूदा प्रधानमंत्री के संदेश से मनरेगा में बजट बढ़ने की उम्मीद तब खत्म हो गई, जब वित्त मंत्री ने इस भारी भरकम बजट में रोजगार देने की संजीवनी मनरेगा योजना के लिए लिए झुनझुना थमा दी. जब देश में बेरोजगारी लगातार बढ़ती जा रहीं हैं. लोगों की क्रयशक्ति घट रही है तो अगर मनरेगा का दायरा व बजट बढ़ता और यह पैसा ग्रामीणों तक पहुंचता तो उनका उपभोग व्यय बढ़ता. जिससे अर्थव्यवस्था में सुधार होता है. कहते हैं कि आज हर तरफ से जब बहुत से रोजगार बंद हो चुका है. जहां सब लोग इस योजना का विस्तार करने की बात कर रहें हैं वहीं ग्रामीण क्षेत्र की तरह शहरों में मजदूरों को काम देने के लिए इस योजना को लागू करने की बात कर रहें हैं. सौ दिन काम देने की जगह साल में दो सौ दिन काम देने की बातें हो तो इसके बजट में सरकार की कटौती व 20,000000000000 करोड़ की भारी  भरकम पैकेज में भी मनरेगा की अनदेखी सरकार द्वारा मजदूरों की रोजगार देने की मंशा पर सवाल उठा ही देती हैं. वित्त मंत्री मनरेगा मजदूरों की मजदूरी में बढ़ोतरी भी पूर्व में ही घोषित हो चुकी मजदूरी का पुनः घोषित किया था जबकि मंहगाई के हिसाब से मजदूरों की मजदूरी आज भी कम है. लेकिन इसमें भी देखा जाए तो पूर्व में दी जा रही मजदूरी 182 रूपये से बढ़ाकर 202 रूपये किया गया. वही उत्तर प्रदेश में मजदूरों की मजदूरी का जो नोटिफिकेशन जारी हुआ है वह 201 रूपये की हैं. जब मुद्रा स्फीति उच्चतम स्तर पर है और क्रयशक्ति घट रही है तो मनरेगा पर सरकार खर्चा ज्यादा करना चाहिए था लेकिन सरकार ने नहीं किया. अभी तो यह स्थिति हैं कि बड़ी  जद्दोजहद के बाद मनरेगा मजदूरों की बकाया मजदूरी 611 करोड़ रूपये काम करने के कई माह के बाद भुगतान हुआ हैं,. वही अभी तक पक्का काम के मैटेरियल की भुगतान 28 जनवरी के बाद का नहीं हो पाया है. जहां कार्य स्थलों पर जाकर मजदूरों की संख्या व नाम के आधार पर मास्टर रोल निकाले जाने, मनरेगा मजदूरों की सुविधा व वैश्विक महामारी में सुरक्षा व महिला मनरेगा मजदूरों की बच्चों की देखभाल करने की व्यवस्था का सवाल का भी खड़ा हैं.