योगी सरकार के पास भयावह होती बेरोजगारी से निपटने का नीतिगत समाधान नहीं : अजय राय

योगी सरकार के पास भयावह होती बेरोजगारी से निपटने का नीतिगत समाधान नहीं : अजय राय



चन्दौली/लखनऊ: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में बेरोजगारी के भयावह स्थिति होने पर कोई  नीतिगत समाधान का अभाव है. यह सरकार रोजगार के मोर्चे पर फेल हैं. उक्त बातें स्वराज अभियान के नेता अजय राय ने शनिवार को  बातचीत में कहा है.

       उन्होंने कहा कि मोदी व योगी  सरकार की महत्वपूर्ण उपलब्धि यह भी हैं कि इनके कार्यकाल में बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत से ज्यादा रफ्तार में बढ़ी हैं और आजादी के बाद रिकॉर्ड स्तर पर बेरोजगारी का आंकड़ा पहुंच गया है.                                                                     उत्तर प्रदेश में निवेश, रोजगार सृजन और सरकारी नौकरी देने का प्रोपेगेंडा तो खूब किया गया लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है.भाजपा के  चुनावी वादे में प्रमुख वादा यह  था कि 70 लाख रोजगार का सृजन किया जायेगा और सरकारी विभागों में खाली समस्त पदों को 90 दिनों के अंदर चयन प्रक्रिया शुरू कर भरा जायेगा, इसके साथ ही चयन प्रक्रिया में भ्रष्टाचार दूर किया जायेगा और इसे पारदर्शी भी बनाया जायेगा.

     भले ही सरकार यह दावा करे कि रोजगार सृजन प्रदेश में भारी पैमाने पर हुआ है लेकिन यह हकीकत कोसों दूर है. बात करें प्रदेश में इंवेस्टर्स मीट का तो उसका क्या हश्र हुआ है, सभी जान चूंके हैं. यहां बेहद कम निवेश अभी तक हुआ है.                                                           दरअसल, प्रोपेगंडा के सिवाय रोजगार सृजन के सवाल पर इस सरकार में योजनाएं ऐसी दिखाई नहीं दे रही हैं जिन पर विचार किया जा सके.

                                                              उत्तर प्रदेश व केंद्र सरकार द्वारा जो दशकों से खाली पद हैं , क्या उन्हें भरने की नीति बनाई गई है, आखिर बेकारी के इस भयावह दौर में 24 लाख से ज्यादा खाली पदों (सृजित)को भरने में अवरोध क्यूं है.

  योगी सरकार अपने प्रोपगंडा में दावा करता है कि प्रदेश में पारदर्शी चयन प्रक्रिया बहाल किया जाए और पिछली सरकार के भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने की नीति के विपरीत जीरो टालरेंस की नीति पर सरकार अमल कर रही है. सरकारी नौकरी देने के अपने वादे को तेजी से पूरा कर रही है, लेकिन इसकी सच्चाई क्या है?                                                श्री राय ने आरोप लगाया कि योगी सरकार ने पहला साल तो आयोगों के पुनर्गठन में लगा दिया,और उसे पारदर्शी बनाने के लिए इसे जरूरी बताया गया. पारदर्शिता तो पुनर्बहाल नहीं हुई लेकिन अपने चहेते, प्रशासनिक तौर पर अक्षम, भ्रष्ट लोगों की नियुक्ति से जाने-अनजाने पैदा किये गए विवादों, मामलों के न्यायिक प्रक्रिया में उलझने से जो चयन प्रक्रिया जरूर चल भी रही थी. वह भी बेपटरी हो गई. पेपर लीक, धांधली, प्रश्न पत्रों के विवाद से लेकर एक के बाद एक विवादों की अंतहीन श्रंखला बन गई. जिसके समाधान की प्रदेश सरकार की न तो कोई नीति है और न ही ऐसा करने को वह इच्छुक ही प्रतीत होती है.

   यही नहीं जो शिक्षक भर्ती एवं कुछ अन्य भर्तियों की जो प्रक्रिया पिछली सरकार में शुरू हुई थी, उनमें भी जानबूझकर पैदा किये गए अनगिनत विवादों, भ्रष्टाचार से न्यायिक प्रक्रिया में उलझ कर रह गए हैं, एक मामला सुलझता नहीं है कि दूसरा विवाद सामने आ जाता है. अखिलेश सरकार में भ्रष्टाचार और विवाद के मामलों में कोई मुकम्मल नीति नहीं बनाई गयी थी लेकिन योगी सरकार भी अखिलेश सरकार से भी आगे निकल गई, जिसका खामियाजा प्रदेश का युवा भुगत रहा है.

         

    उन्होंने आगे कहा की  रोजगार सृजन के बारे में भी सरकार अपनी नीति स्पष्ट करे. आज बेकारी का सवाल युवाओं के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बना हुआ है. उसको सरकार हल करने पीछे हटी हुई है. कोरोना काल में जनसम्पर्क में निकले भाजपा कार्यकर्ताओं व सरकार के नुमाइंदे को इस सवालों का भी जबाब देना चाहिए.