बॉर्डर से जिला प्रशासन का कैम्प हटा बिना जांच किए बिहार में आवाजाही शुरू

बॉर्डर से जिला प्रशासन का कैम्प हटा बिना जांच किए बिहार में आवाजाही शुरू

    ◆ प्रवासी मजदूरों से बिहार में महामारी फैलने की आशंका बढ़ गया

दुर्गावती/कैमूर, रिपोर्ट-संजय मल्होत्रा   उत्तर प्रदेश बिहार सरहद पर खजुरा गांव के सामने कैमूर जिला शासन प्रशासन के द्वारा  लॉक डाउन में वैश्विक महामारी को देखते हुए कैमूर जिला शासन- प्रशासन  द्वारा लगाया गया कैंप को

 बुधवार की सुबह हटा लिया गया. इस कैम्प में विभिन्न राज्यों से आने वाले प्रवासी मजदूरों की जांच तथा नाम पता नोट करते हुए रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को पूरा करने के बाद थर्मल स्क्रीनिंग प्रवासी मजदूरों का किया जाता रहा 
 उसके बाद प्रवासी मजदूरों को ट्रेन व बसों के द्वारा उनके गृह जिला भेजा जा रहा था.
 लेकिन बुधवार की सुबह में ही प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा कैंप को हटा लिया गया है.
बता दें कि जांच कैंप हटने के बाद भी प्रवासी मजदूरों का पलायन जारी है. जिला प्रशासन के द्वारा अस्थाई रूप से टेंट में कैंप लगाकर प्रवासी मजदूरों का जांच पड़ताल किया जा रहा था.
ताकि बिहार में जो भी प्रवासी मजदूर प्रवेश करते हैं उनका जांच प्रक्रिया बॉर्डर पर ही पूरा करके छोड़ा जाना था.
 लेकिन अब टेंट हटने के बाद भी प्रवासी मजदूर बिहार की सीमा में प्रवेश कर रहे हैं, जो बिना जांच और बिना थर्मल स्क्रीनिंग कराएं ही अपने घर को सीधा पहुंच रहे हैं. ऐसी स्थिति में वैश्विक महामारी पूरे बिहार में फैलने की आशंका जताई जा रही है.

 विदित हो कि यूपी बिहार बॉर्डर से  प्रशासनिक  
कैंप हटने के बाद बुधवार की सुबह बिहार सीमा में पहुंचे प्रवासी मजदूर दिनेश ऋषि सबलू ऋषि कन्हैया ऋषि मनोज ऋषि पंकज ऋषि जिसमें महिला जानकी देवी पति पंकज ऋषि गोद में डेढ़ वर्ष का बच्चा लिए हुए अपना दुख दर्द भरी कहानी बयां की.                                   बताया की हरियाणा से चले है बिहार के पूर्णिया जिला जाना है और तीन दिनों से भूखे प्यासे आ रहे हैं बीच रास्ते में कुछ दूर तक ट्रक वाले को पैसा देकर यूपी तक आया और उसके बाद बस वाले ने किराया लेकर बनारस पहुंचाया.                                                   फिर वहां से कोई साधन नहीं मिलने के बाद पैदल के रास्ते बिहार सीमा में पहुंचे हैं.
अब यहां आने के बाद कोई साधन नहीं दिखाई दे रहा है और ना ही कुछ खाने पीने की व्यवस्था है. अगर कुछ खाने पीने को नहीं मिलेगा तो हम अपने छोटे बच्चे को दूध कैसे पिलाऊंगी और रास्ते में कहीं दूध का व्यवस्था भी नहीं मिल पाया है. अभी लंबा सफर है और बिहार के पूर्णिया जिला तक जाना है.
अगर कोई साधन नहीं मिलता है तो फिर यहां से लाचार और बेबस होकर पैदल ही सफ़र तय करना होगा.