यूपी में आंगनबाड़ी कर्मियों की छटंनी असंवैधानिक: दिनकर कपूर

यूपी में आंगनबाड़ी कर्मियों की छटंनी असंवैधानिक: दिनकर कपूर


◆ बिना ग्रेच्युटी व पेंशन के छटंनी पर रोक लगाने की मांग                           ◆   प्रमुख सचिव बाल सेवा एवं पुष्टाहार को भेजा गया ईमेल पत्र                                                           लखनऊ:  उत्तर प्रदेश में 62 साल के ऊपर की आंगनबाड़ी व सहायिका को बिना नोटिस दिए की जा रही छटंनी अवैधानिक, संविधान विरूद्ध एवं जिंदा रहने के मूल अधिकार का उल्लंधन है. और यह माननीय न्यायालय की भी अवमानना है.                                                    इसलिए तत्काल प्रभाव से इस पर रोक लगाने की मांग वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर ने प्रमुख सचिव, बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग को ईमेल से पत्र भेजकर किया है.                                                   मंगलवार को इस पत्र की आवश्यक कार्यवाही हेतु मुख्य सचिव उत्तर प्रदेशक व निदेशक आईसीडीएस को भी पत्र भेजा गया है.

पत्र में दिनकर ने सवाल उठाया है कि 2012 के जिस शासनादेश का हवाला देकर यह छटंनी की जा रही है.            उसे तो हाईकोर्ट की लखनऊ खण्ड़पीठ ने 2013 में ही खारिज कर सरकार को आंगनबाड़ी की सेवा शर्तों की नियमावली बनाने को कहा था. लेकिन आज तक नियमावली नहीं बनाई गयी और इस तरह आंगनबाड़ियों को वृद्धावस्था में पेंशन पाने और ग्रेच्युटी पाने के संवैधानिक अधिकार से भी वंचित कर दिया गया.                                                                              मौजूदा हालात में उलटा यह आदेश उन आंगनबाड़ियों पर थोपा जा रहा है जो 2012 से पहले भर्ती की गयी है. तब आखिर सरकार बताए की किस अधिकार व कानून के तहत यह कार्यवाही कर रही है. यहीं नहीं इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 2010 में एक रिट में 2003 व 2007 में हुई भर्ती का हवाला देते हुए खुद सरकार ने माना है कि आंगनबाडी की सेवा की कोई उम्र सीमा नहीं है.                                    यदि वह कार्य करने में शारीरिक तौर पर अक्षम हो जाती है तो उसे कारण बताओ नोटिस देते हुए सुनवाई का अवसर देकर सेवा से हटाया जा सकता है. यहां तक कि 2013 में तत्कालीन निदेशक आईसीडीएस ने अपने आदेश में पूर्ववर्ती सभी आदेशों को निरस्त करते हुए कहा कि आंगनबाड़ी को सेवा से पृथक कर देना कठोरतम दण्ड़ है.                                 इसलिए आंगनबाड़ियों को सेवा से पृथक करने से पहले सुनवाई का अवसर देना उचित व नैसर्गिक न्याय के लिए आवश्यक है  लेकिन मौजूदा योगी सरकार ने इसका भी पालन नहीं किया. पूर्णतया मनमर्जी पूर्ण, विधि विरूद्ध, संविधान विरूद्ध छटंनी का आदेश जारी कर दिया है.                                               बलिया, अलीगढ़, फरूर्खाबाद समेत कई जिलों में 62 साल से ज्यादा की आंगनबाड़ियों को बिना नोटिस के और बिना सुनवाई का अवसर दिए उनकी सेवाएं स्वतः समाप्त कर दी गयी और पूरे प्रदेश में जांच करायी जा रही है.                                                                    " पत्र में कहा गया कि संविधान एक नागरिक के बतौर राज्य के कर्तव्य को निर्धारित करता है. अनुच्छेद 21 जीने के, अनुच्छेद 43 कर्मकार के शिष्ट जीवनस्तर, अनुच्छेद 41 वृद्ध को वृद्धावस्था में सरकारी सहायता देने का राज्य का कर्तव्य निर्धारित करता है. लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा अपनायी जा रही छटंनी की मनमानी प्रक्रिया इस सबके खिलाफ है."                         " उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 45 में छः वर्ष के कम उम्र के बच्चों की देखभाल और शिक्षा का उपबंध करती है और अनुच्छेद 47 पोषाहार स्तर व जीवनस्तर, तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य निर्धारित करता है. राज्य की इस जबाबदेही को जमीनी स्तर पर पूरी कर्तव्य निष्ठा के साथ आंगनबाड़ियां लागू करती है."                          "अपना पूरा जीवन इस सामाजिक काम के लिए न्यौछावर करने वाली आंगनबाड़ियों की छंटनी का सरकार का यह तरीका पूरी तौर पर क्रूर व अमानवीय है. जिसे न्यायहित में वापस लिया जाना जरूरी है और यदि सरकार छटंनी ही करना चाहती है तो वह छटंनी से पूर्व आंगनबाडियों को पेंशन व ग्रेच्युटी देना सुनिश्चित करे. "