अपने बच्चों को राणा प्रताप के जीवन के बारे में बताएं। सनातन धर्म को पुनः स्थापित करें यही सच्ची श्रद्धांजलि महाराणा प्रताप के लिए होगी।
- समय की मांग के अनुसार प्रकृति ने राणा को पैदा किया
- बचपन से ही राणा छोटी जातियों के संपर्क में रहे जो जातियां युद्ध कौशल को भली-भांति जानती थी
- आज भी कोल भीलऔर लोहार जातियों ने अपने राणा प्रताप को आदर्श मानता है
- कोल भील जाति छापामार युद्ध करना जानती थी
- लोहार जाति हथियार बनाना जानती थी
जयराम राय / पूर्वांचल न्यूज़ प्रिंट / चंदौली। अपने बच्चों को राणा प्रताप के जीवन के बारे में बताएं। सनातन धर्म को पुनः स्थापित करें यही सच्ची श्रद्धांजलि महाराणा प्रताप के लिए होगी। यह विचार जनपद चंदौली के बजरंग मैरेज लॉन में अंतरराष्ट्रीय क्षत्रिय राजपूत संघ के जिला अध्यक्ष लक्ष्मी नारायण सिंह ने खचाखच भरे राजपूत वर्ग के लोगों के बीच में कही।
उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप जी को सच्ची श्रद्धांजलि अपने आप में परिवर्तन करने से होगा ।आप लोग राणा प्रताप के पद चिन्ह पर चलने का शपथ लेते हैं तो इस बात को याद रखें कि राणा प्रताप ने कोल भील जाति से बहुत बढ़िया संबंध बनाकर रखे हुए थे।दूसरी जाति लोहार जाति थी।इन दोनों जातियों के पास दो प्रकार के युद्ध कौशल की जानकारी थी ।
कोल भील जाति छापामार युद्ध करना जानती थी ।और लोहार जाति खूबसूरत हथियार ,विभिन्न प्रकार के हथियार बनाकर योद्धाओं को दिया करते थे। ऐसी स्थिति में एक सफल योद्धा के लिए इन दो रणनीतिकारों की जरूरत हमेशा पड़ती थी। इसलिए हमें इनके साथ सामंजस्य बनाकर रखना पड़ेगा |
महाराणा प्रताप को जातिवाद से कोई मतलब नहीं था वह राजपूत थे तो मेवाड़ की शान में अपनी मिट्टी के लिए उन्होंने अपने महल से निकलकर वैभवशाली ऐसो आराम को छोड़कर जंगल में रहकर पहाड़ों के बीच में रहकर उन्होंने अकबर की सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया और कभी हार नहीं मानने वाले युद्ध कौशल को स्थापित किया ।
आज पूरे विश्व में महाराणा प्रताप की पूजा होती है इसका उदाहरण जो भी वीर किसी भी देश का होगा वह राणा प्रताप को अपना योद्धा गुरु मानता है आप लोग यहां आए हुए हैं आप लोग अपने आप में परिवर्तन लाइए अपने बच्चों के बीच में परिवर्तन लाइए छोटी जातियों से प्रेम मोहब्बत करना सीखिए और उनके अंदर छिपे हुए गुड कौशल को निखारने का काम करिए ।
बेशक राणा प्रताप ने आर्थिक तंगी के कारण अपना राज पाठ छोड़कर दूसरे राज्य में पलायन करने की पूरी प्लानिंग के तहत निकल चुके थे लेकिन उस योद्धा को भामाशाह जैसे साहूकार नेआर्थिक मदद करके राणा प्रताप को पुनः उनकी राजगद्दी पर जाने के लिए विवश किया ।
उस जमाने में 25 लाख रुपया भामाशाह ने राणा प्रताप जी को दिया तो राणा प्रताप जी का राजपाठ पुनर्जीवित हो गया।आज गोपाल जी को एक भामाशाह की जरूरत है तो रामप्रताप जी के अगले 9मई को राजा भैया जैसे भामाशाह भी मिल जायेगे लेकिन आप हिम्मत मत हारिए।अच्छे काम करने में तमाम तरह से परेशानियां आती है।जो समाप्त होगी।
इस कार्यक्रम को संबोधित करने वालों में वीरेंद्र सिंह,भूपेंद्रसिंह दीपू,रामनगिना सिंह,संत विलास सिंह,रमेश सिंह आदि रहे।संचालन कृष्ण। कुमार सिंह ने किया।