कविता
पहिले मारे फिर गरिआवे
लोर पोंछ झगरा फरिआवे
पहिले छितरावे फिर सरिआवे
दूर ढकेल के फिर नियरावे
काहें के होखेल,देख के क्रुद्ध
करेलन नेता अइसने युद्ध।
अब हीं झगरा अबहिंए मेल
राजनीति में इहे होला खेल
अनकरा हाथ में देके नकेल
जनता से होला खाली दलेल
इहे कहाता राजनीति शुद्ध
करेलन नेता अइसने युद्ध।
वोट खातिर लगावेले लहरा
करेलन चोरी, चलता पहरा
बनाके जनता अन्हरा बहरा
हर बार जीतें राज बा गहरा
भरमाके जनता बनसु बुदध
करेलन नेता अइसने युद्ध।
बक्सर- बिहार