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फोटो स्रोत:Google |
उन्होंने यहां प्रेस को जारी बयान में कहा कि कर्ज़ बकायेदारों की सूची जारी होने के बाद अब यह साफ हो गया है कि अपने कारपोरेट मित्रों की मदद के लिए सभी सरकारों ने नियम कानूनों को ताक पर रखकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के जरिए कर्ज बांटा और जनता के धन के लूट को अंजाम दिया. इन सरकारों ने जानबूझकर कर्ज न लौटाने वाले कारपोरेट घरानों के कर्जों को माफ कर दिया और उनसे वसूली नहीं की, जिसने बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया और देश की अर्थव्यवस्था को खोखला करने का काम किया है.
उन्होंने कहा कि आज जो आर्थिक संकट देश झेल रहा है उसके पीछे मोदी सरकार समेत तमाम सरकारों द्वारा अपने कारपोरेट मित्रों को कर्ज बांटने और उसकी वसूली न करने की नीति ही जिम्मेदार हैं. इसी के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बर्बाद हुए. इस नीति पर पुनर्विचार करने की जगह सरकारें बैंकों को बंद करने, उनका विलय करने और पुनर्गठन करने में लगी रही हैं. एक तरफ सरकार किसानों, बुनकरों व छोटे मझोले व्यपारियों का कर्ज आज भी माफ करने को तैयार नहीं है. वही सक्षम कारपोरेट घरानों का लाखों करोड़ों कर्ज माफ कर दिया. उन्होंने कहा कि वर्ष 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किसानों को सुलभ, सुरक्षित व सस्ता कर्ज देने व आम आदमी तक बैकिंग पहुंचाने के साथ सूदखोरी से मुक्ति के लिए किया गया था. जिसे निजीकरण के जरिये बर्बाद किया जा रहा है.
उन्होंने कहा बैंक के कर्ज में हुई लूट की वजह से मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट तक में बकायेदारों की सूची सार्वजनिक करने से बच रही थी. क्योंकि इससे उसका चेहरा बेनकाब हो जाता है. उन्होंने कहा कि कोविड-19 की इस वैश्विक आपदा और आर्थिक संकट के दौर में यह आवश्यक व राष्ट्र हित में होगा कि बैंकों में जमा जनता के धन की कारपोरेट मित्रों को कर्जा बांटकर जो लूट की गई है उसे सरकार ठीक करे और जानबूझकर कर्ज न देने वाले कारपोरेट घरानों से वसूली की जाए. इसके लिए यदि आवश्यक हो तो सरकार को अध्यादेश या कानून भी लाना चाहिए ताकि देश की आर्थिक स्थिति सुधर सके. रिपोर्ट: भूपेन्द्र कुमार