लखनऊ: पंजाब से पैदल बिहार जा रहे मजदूरों को कल रात मुजफ्फरनगर में एक तेज रफ्तार रोडवेज बस ने कुचल दिया, जिससे 6 की मौत हो गई और 3 घायल हो गए. सीएम ने प्रत्येक मृतक के परिजनों को 2-2 लाख रुपए और प्रत्येक घायल को 50-50 हज़ार रुपए का मुआवजा देने की घोषणा की. श्रमिकों के शवों को बिहार भेजने के लिए अधिकारियों को निर्देशित किया गया है.सहारनपुर मंडलायुक्त को जांच के बाद रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है:
पुलिस के मुताबिक मृतक मजदूर बिहार के गोपालगंज ज़िले के रहने वाले हैं, वो पंजाब से पैदल ही वापस लौट रहे थे। वहीं दूसरी ओर समस्तीपुर में
शंकर चौक के पास एक बस और एक ट्रक की टक्कर होने से करीब 2 लोगों की मौत और 12 लोग घायल हो गए. घायलों को अस्पताल ले जाया गया है. यह बस मुजफ्फरपुर से 32 प्रवासी मजदूरों को लेकर कटिहार जा रही थी. देश में कोरोना की वजह से चल रहे लॉकडाउन का सबसे बड़ी मुसीबत अगर झेलनी पड़ रजी है तो वे मजदूर हैं. एक बार फिर पैदल अपने घर जा रहे कुछ मजदूरों ने अपनी जान गंवानी पड़ी है. बुधवार की देर रात मुजफ्फरनगर में पैदल ही अपने घरों को जा रहे छह मजदूरों को रोडवेज बस ने कुचल दिया और मौके पर ही मजदूरों की मौत हो गई.
ये सभी मजदूर पंजाब से बिहार के गोपालगंज अपने घर जा रहे थे, कोई साधन नहीं मिला तो ये पैदल ही चल दिए, लेकिन वो घर नहीं पहुंच पाए और रास्ते में ही उनकी दर्दनाक मौत हो गई. इस हादसे में पहले तीन मजदूरों के घायल होने की भी खबर है.
कोरोना संक्रमण में स्थिति यह है कि मजदूरों पर आफत हर जगह आई है, मध्यप्रदेश के गुना में भी करीब 8 मजदूरों की मौत हो गई है. ये मजदूर महाराष्ट्र से यूपी जा रहे थे. जिस ट्रक सें सवार होकर ये लोग जाा रहे थे वो ट्रक एक बस से टकरा गई. जिसमें 8 मजदूरों की मौत हुई और करीब 50 घायल हो गए.
इससे पहले बुधवार को भी कानपुर में एक तेज रफ्तार मिनी ट्रक सड़क किनारे खड़े ट्रक से टकरा गया. इस हादसे में मिनी ट्रक में सवार एक महिला और एक बच्चे की मौत हो गई. मिनी ट्रक में सवार अन्य 60 प्रवासी मजदूर घायल हो गए. ये लोग गुजरात से अपने घर लौट रहे थे. यह हादसा अकबरपुर कोतवाली क्षेत्र में हुआ. घायलों को कानपुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
कुछ दिन पहले ही महाराष्ट्र के औरंगाबाद में हुए रेल हादसे में 16 मजदूरों की जान चली गई थी. ये सभी मजदूर पटरी के सहारे अपने घर जा रहे थे. इन घटना के बावजूद सरकार और प्रशासन की आंखें शायद नहीं खुली हैं. वहीं, मजदूर अपने घर जाने की चाहत और उम्मीद को छोड़ना नहीं चाहते.